
सब कुछ खुल जाने से
बहुत कुछ
साफ साफ दिखता है
फिर वह बातें हों
या मुलायम सतह
गहरी हैं गुत्थियों की घाटियाँ
और दो आंखें है
एक मे सुख है
दुख है दूसरे मे
दिखता है जीवन
मिला जुला सब
खोल देने से
कई आकाश मिलते हैं
उड़ान भरने के लिए
बस
होटों पर
मुस्कान की लहर ही
रोकती रहती है
आंसुओं की नदी
खोल कर
होते है मुक्त
वजह के
खुल जाते हैं
तट बंध
डा अतुल शर्मा