
रास्ते बहुत सरल हो जाते है
जब हम खड़े हो जाते है और
तान लेते है मन की मुट्ठियाँ
हमारे होटों से फिसलने लगती है आग
और कोई रास्ता नही रहता तो
बनाने लगते है नये रास्ते
रास्ते,,,,
जो अपने लिए भी होते है
और सबके लिए भी
लेट जाती हैं नदियाँ
और खड़ा हो जाता है
पहाड़
हमारे भीतर
डा अतुल शर्मा