
गर्मी भर ढोता रहा रोज़
ईटें
पसीने को बेचता रहा जो
घर परिवार से दूर
वही था जो रोज़ मांगने आता है पानी
वह जो बन रहा है मकान
उसमे मज़दूरी करता हुआ
आने वाले समय की भर रहा है नींव
एक बार देखता है वह
बने हुए मकान को
दूर खड़ा खड़ा
गृह प्रवेश से दूर
चला गया है
किसी और मकान की नींव भरने के लिए।
डा अतुल शर्मा