
लगातार टकराते हुए
लोहे की दीवार पर
करते हुए चोट
चलते ही रहे
बोलते हुए।।
आवाज़ उठी और
समुद्र हो गयी
आग की लपटों के बीज से
निकली एक नदी
बाहें फैलीं
और उसमे समा गयी दुनिया
होटों से फिसल कर
गीत
बहने लगे
शांत झील को देखते हुए।।
डा अतुल शर्मा
लगातार टकराते हुए
लोहे की दीवार पर
करते हुए चोट
चलते ही रहे
बोलते हुए।।
आवाज़ उठी और
समुद्र हो गयी
आग की लपटों के बीज से
निकली एक नदी
बाहें फैलीं
और उसमे समा गयी दुनिया
होटों से फिसल कर
गीत
बहने लगे
शांत झील को देखते हुए।।
डा अतुल शर्मा