
मन की देहरी से शुरू होती है,
वह बैच पर भी हो सकती है,
सड़क मे छाये कोहरे के बीच मे भी,
पेड़ों को सहलाते हुए हुए भी,
देर रात को,
तारीख बदलने तक भी,
जुगनुओं को याद करते हुए,
पहाड़ के अंधेरे मे भी,
बातों की दुनियाँ,
नींद मे भी है,
नींद से पहले भी,
मन की देहरी है,
बातों की देह।
डा अतुल शर्मा