
जी रही है नदी
उसने देखे हैं प्रवाह
रोक दिये जाने का दर्द
खेतों मे बहा देने का सुख
नौलो धारों के घुलने मिलने का अपना पन
गहराई
गल्तियां करने वालो को सबक सिखने का नैसर्गिक रुप
जी रही है मेरे अंदर
तुम्हारे अंदर
नदी
छू लो एक बार इसे
और अंजुरी मे भर लो
उसका चेहरा
नहा लो उसमे
जी रही है नदी
अदृश्य होने से पहने
जी रही है नदी
एक पूरी दुनिया की तरह
हमारे अंदर
दुनिया बचा लो
नदी की
सबके लिए
डा अतुल शर्मा