
नयनो का दर्पण
राज़ को राज़ रहने दे
तब न
बोल ही देता सच
सच के अन्दर जो
छोटी सी नदी है
उसमे पगडंडियां महसूस करती हैं
मन की खूबसूरत तपिश
प्रेम पानी से छन कर
कायनात मे फैल जाता है
गुनगुनाता हुआ कि
समझा करो,,,,,,,
आंखों के उस पार
दो होंट है
जो आंखों से उधार लेते रहते है
आवाज़
देती ही रहती
लगातार
रात भर
पहरा
देह और मन के लिए
डा अतुल शर्मा