
रात भर सर्दी ने सांसे लीं,
सुबह कोहरा गुनगुनाता रहा,
जंगलों और घरों का धुंधला गया दृष्य,
ठंडी उंगलियाँ एक दूसरे से उलझी,
और मुंह से निकलती रही भाप
ऐसे मे मै तुम्हारे लिये भेज रहा हूँ,
कोहरे पर कविता,
सूरज की प्रतीक्षा से,
ऊचांई से भी ऊंची जगह पहुँच चुकी है महिलाओं की आवाजें,
कोहरे मे घर है,
भीगती रही है छत पर पड़ी रह गयी कुर्सी,
जुड़ी हुई है कोहरे से दुनिया,
कब छंटेगा यह कोहरा,
जो आंखों मे,
पर्दे सा पड़ा है,,,
डा अतुल शर्मा